महात्मा गाँधी की पुण्यतिथि पर हिन्दू महासभा की राष्ट्रीय सचिव पूजा शकुन पांडे ने कृत्रिम बन्दूक से महात्मा गांधी के पुतले को गोली मारकर गोड़से की मूर्ति को माला पहनाकर मिठाई बांटी। महात्मा गाँधी की हत्या के इकहत्तर साल बाद भी जिस वैचारिक कट्टरता ने महात्मा गाँधी की हत्या की थी, आज भी गाँधी के प्रति उसकी नफ़रत की बर्फ़ नहीं पिघली।आज़ादी आन्दोलन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करने वाले सत्य और अहिंसा के पुजारी का ऐसा दुःखान्त किसी ने नहीं सोचा था।
- सुरेन्द्र रघुवंशी
महात्मा गांधी से आज़ादी की लड़ाई के तौर तरीकों में मतभेद हो सकते हैं। मैं खुद भगतसिंह , सुखदेव और राजगुरु को फांसी से न बचाने के लिए गांधी जी को कटघरे में खड़ा करता हूँ। पर इसके लिए उनकी हत्या को स्वीकार नहीं किया जा सकता। महात्मा गांधी की हत्या में भगतसिंह कोई कारण सूत्र हैं भी नहीं। गांधी की हत्यारी व्यवस्था तो भगतसिंह की घोर विरोधी व्यवस्था है और साम्प्रदायिक फासीवादी कारणों से नाथूराम गोड़से ने महात्मा गांधी की हत्या कर दी। इस जघन्य हत्याकांड का महिमामंडन लोकतांत्रिक देश में स्वीकार्य नहीं हो सकता।
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वह पिस्तौल जिससे नाथूराम गोड़से ने महात्मा गाँधी को गोली मारी |
आप तार्किक आधार पर चीजों का लोकतांत्रिक तरीके से विरोध कर सकते हैं पर विरोधी वैचारिकता धारण करने वाले व्यक्ति की हत्या कर देना ही फासीवाद का चरमोत्कर्ष है। यही साम्प्रदायिक फासीवाद महात्मा गांधी की हत्या से लेकर लेखक कलबुर्गी, पानसरे, दाभोलकर और गौरी लंकेश तक की हत्या के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार है। सभ्य और आधुनिक समाज में इस हत्यारी वैचारिकता के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए ।यह निंदनीय और सर्वत्र अस्वीकार्य है।
महात्मा गांधी के पुतले को गोली मारने की घटना फासीवाद की गहन उपस्थिति के संकट को रेखांकित करती हुई देश को चिंता में डालती है। सरकारें जब ऐसी कुव्यवस्था की अघोषित रूप से पोषक बन जाएं तब शांति, सुरक्षा, मनुष्यता, संवेदनशीलता और भाईचारे पर मंडराते खतरे को भांपकर उनकी रक्षा में यथासम्भव एकजुट प्रयास किए जाने चाहिए।
घटना का वीडियो ये रहा -
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