''विहिप, शिवसेना सहित संघ के सरकार पर दबाब बनाने की रणनीति फेल हो गई है. संघ प्रमुख मोहन भागवत ने साफ़ कहा कि कोर्ट में राम मंदिर मामला कोर्ट की प्राथमिकता में नहीं है. ऐसे में अब सरकार तय करे कि कैसे मंदिर बने. उन्होंने कहा कोई काम करना होता है तो वैसा सोचा जाता है कि यह काम कैसे हो सकता है, लेकिन सरकार इस प्रकार से नहीं सोच रही है.''
उन्होंने कहा कि यह मुद्दा कोर्ट में है, निर्णय जल्दी दिया जाना चाहिए. इससे यह भी साबित होता है कि मंदिर वहां था. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को प्राथमिकता नहीं दी. न्याय में देरी न्याय न देने के समान है. अगर किसी कारण अपनी व्यास्तता के कारण ये पता नहीं अपनी समाज के संवेदना को ना जानने के कारण न्यायालय की प्राथमिकता नहीं है तो सरकार सोचे कि इस मंदिर को बनाने के लिए कानून कैसे आ सकता है और शीघ्र इस कानून को लाए, यही उचित है.
मोहन भागवत ने कहा, राम मंदिर पर अब धैय का वक्त बीत गया है. राम मंदिर के लिए दृढ़ निश्चय और वीरता चाहिए. राम मंदिर के लिए कानून बनाने के लिए जन दबाव जरूरी है. राम मंदिर पर सरकार जल्द कानून बनाए. पूरे भारत को राम मंदिर के लिए खड़ा होना पड़ेगा, लेकिन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने संसद के शीतकालीन सत्र में राम मंदिर बनाने के लिए बिल या इसके तुरंत बाद अध्यादेश लाने की अटकलों को विराम लगा दिया है. शाह ने कहा कि मंदिर मामले में कोई निर्णय लेने से पहले पार्टी और सरकार जनवरी में सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई का इंतजार करेगी.
एक चैनल को दिए इंटरव्यू में भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि पार्टी और सरकार सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई का इंतजार करना चाहती है. उन्होंने उम्मीद जताई कि जनवरी में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी और सब कुछ ठीक हो जाएगा. इधर प्रधानमंत्री मोदी मंदिर टलने के पीछे कांग्रेस को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.
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